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20 May 2024 · 1 min read

सब दिन होत न समान

सब दिन होत न एक समान

जिनसे बड़े-बड़े योद्धा डरते थे,
गांडीव गदा धारण करते थे,
बना वासुदेव को सारथी अपना,
अरिदल पर बाणों की वर्षा करते थे।
पर भील समक्ष न चला कुछ उनका,
धारित था वही तरकश, तीर, कमान,
सब दिन होत न एक समान।
ऐसे भी थे सत्यवादी नृप एक,
था उनका पुण्य प्रताप अनेक,
अपना वचन निभाने को,
दिया था अपना देह तक बेच,
करना पड़ा श्मशान घाट पर,
कफ़न लेने का काम|
सब दिन होत न एक समान।
जिनके कल, बल, छल का,
बहुत नमूना देखा इतिहास,
रच दिया महाभारत का रण,
करवाकर दुर्योधन का उपहास।
वही प्रभु कराहते रहे जंगल में,
खाकर जोरू व्याध का बाण,
सब दिन होत न एक समान।

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