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16 May 2024 · 1 min read

* मैं बिटिया हूँ *

मैं बिटिया हूँ

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जागो धरती के बेटों जागो,

जागो गहरी नींद से,

मैं तुम्हे जगाने आई हूँ।

होता रोज़ प्रदर्शन तेरा

तुझे बिकाऊ कह कर।

कोई और नहीं लूटेरा है वो,

देखो, वह तेरे हीं अपने हैं।

रिश्तों के तार उलझते हीं

घर-बार उलझने लगते हैं

सुना है पुत कपूत बरा,

भाई बिभीषन जैसा था,

बहनो की अनंत कथायें

किंतु माँ तो माँ होती है।

जागो, देखो सौदागर मां-बाप भी।

लक्ष्य बना कर पाला जिसको,

लगा रहे हैं बोली उसकी।

मत ढूँढ सगा इस भीड़ में

हर मुखड़े पर मुखौटा है

अकेला था, अकेले हो

अन्धविश्वास के फेरे में

अन्धा सिद्ध हो जायेगा तू।

लगाने वाले बोली,

फैला कर अपनी झोली

मांग रहे किमत बेटों की

और बहू निःशुल्क।

झोली हरदम साथ न होगी

कड़वी यादें साथ चलेगी

छीन लेगी सुख चैन तेरा।

घर एक दिन तेरा टूटेगा,

दोष बहू के सिर मढ़ेगा ।

दहेज नहीं, जब दिल से-

दिल के तार जुड़ेंगे

आपस में परिवार मिलेंगे

आँगन में दो फूल खिलेंगे

तभी सुखी संसार बनेगा।

देखो, कैसे पिता दहल जाता है,

जब सम्बन्धों की बगीया से

किलकारी ‘बेटी’ की आती है।

दहेज की चिंता में हिस्से का

दूध भी छीना जाता है।

मिट्टी के खिलौने छीन

जेवर, सोने का जोड़े जाते हैं।

जागो देश के बेटों जागो,

खुशियों की खातिर जागो

एक छोटा-सा घर हो अपना

आंगन में परिवार पले

खुशियो का संसार पले

अबकी बारी तेरी है

बिटिया को भी प्यार मिले।

मुक्ता रश्मि

मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार

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