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15 May 2024 · 1 min read

ना मुझे मुक़द्दर पर था भरोसा, ना ही तक़दीर पे विश्वास।

ना मुझे मुक़द्दर पर था भरोसा, ना ही तक़दीर पे विश्वास।
मंदिर मस्जिद से भी नाता ना रहा, ना ही मूरत से आस।
जब से तुम आये हो ज़िंदगी में हर पत्थर पे सर झुकाऊँ
हर धागे पे श्रद्धा रखूँ, हर जादू टोना आये अब मुझे रास।

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