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30 Jun 2016 · 1 min read

याद है

तेरी साँसों का वो शोर याद है
बरसा था जो सावन घनघोर याद है

हाथ बढ़ा कर पकड़ती थीं बारिश की बूँदें जो
मोहब्बत का वो हसीन दौर याद है

झांकना खिड़की से बैठकर बाहों में
घटाओं से घिरा आसमान का वो छोर याद है

बारिशों में चलते रखलेना सर कंधे पर मेरे
साथ देखी थी जो हर भीगी भोर याद है

जाने चली गईं किस दुनिया में छोड़ कर अकेला रूहों पर ना चलता इंसान का जोर याद है

मिलना ही है हमें कब तक रहेंगे जुदा
कभी तो टूटेगी मेरी सांसो की ये डोर याद है

पर जहां भी हो देखो वहां से
आज भी तुमहारे सिवा मुझे ना कुछ और याद है

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