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31 May 2024 · 1 min read

धर्मदण्ड

भारत के संस्कृति संवाहक, अडिग रहो नित निज प्रण में,

करो धर्मयुत कर्म सदा, विश्वास करो बस जन-गण में।

असुर सदा बाधक होते हैं, लेकिन मत विचलित होना,

धर्मदंड को करो प्रतिष्ठित, लोकतंत्र के प्रांगण में।।

– नवीन जोशी ‘नवल’

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