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6 May 2024 · 1 min read

नर्म वही जाड़े की धूप

सूरज कुछ शर्माता,
थोड़ा सा सकुचाता,
धरती पर देरी से आता,
बाहें अधखुली सी खोल कर मुस्काता!!

धरती की बैचेनी पर घबराता,
बिखरा कर कुछ किरणें अपनी,
स्वप्न मृदुल कर दे जाता!!

नर्म वही जाड़े की धूप,
थोड़ा सुकून देकर जाता !!

Language: Hindi
1 Like · 49 Views

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