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10 Apr 2024 · 1 min read

कुर्सी

अपनी -अपनी कुर्सी से चिपके रहो प्यारे!
जिनका मर चुका हो ज़मीर,उन्हे कौन मारे?
जनता तो है मरने के लिए,कभी आतंकवाद,
कभी मँहगाई,और कभी प्रशासन के मारे!!
अपनी -अपनी कुर्सी से….चिपके रहो प्यारे!!

पाच साल के लिए मिल गई हो कुर्सी जिन्है,
उन्है चाह कर भी कौन-कैसे गद्दी से उतारे?
जनता को गृहस्थी चलाने को बेलने है पापड.
बेटे की फीस,ट्यूशन,रसोई सभी पडी उधारे!!
अपनी -अपनी कुर्सी से..चिपके रहो प्यारे!!

समझ नही आता फिर भी कैसे करते है लोग?
पैट्रोल से कुल्ला और दारु के सुबह शाम गरारे!
हा बेशक उनके घर दो वक्त चूल्हा ना ही जले,
क्योकि उनके लिए जिन्दगी,मौज मस्ती है प्यारे!!
अपनी -अपनी कुर्सी से…..चिपके रहो प्यारे!!

बीबी करती है झिक-झिक तेल हो गया डेढ सौ,
पकौडी तलनै को कहते हो,सब्जी झौकने से हारे!
बच्चौ को खाना खिलाए या फिर पढाए-लिखाए?
गरीब,मध्यम सभी को दिन मे भी नज़र आए तारे!!
अपनी -अपनी कुर्सी से …….चिपके रहो प्यारे!!

|बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं सिकंदरा ,आगरा-282007
मो:9412443093

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