सन्तुलित मन के समान कोई तप नहीं है, और सन्तुष्टि के समान कोई
वो जो करीब थे "क़रीब" आए कब..
।। श्री सत्यनारायण कथा द्वितीय अध्याय।।
सांवले मोहन को मेरे वो मोहन, देख लें ना इक दफ़ा
मेरी ख़्वाहिश ने मुझ को लूटा है
पुराना भूलने के लिए नया लिखना पड़ता है
प्रेम एकता भाईचारा, अपने लक्ष्य महान हैँ (मुक्तक)
मैं धर्मपुत्र और मेरी गौ माँ
सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आगे कैसे बढ़ें?
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
किसी के प्रति बहुल प्रेम भी
" हुई हृदय झंकार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —