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19 Mar 2024 · 1 min read

अर्धांगिनी सु-धर्मपत्नी ।

संघर्ष पथ की संगिनी नारी तू पत्नी,
प्रिया,कभी अर्धांगिनी सु-धर्मपत्नी ।

चलती रहती प्राण पथ हरदम अकेली
जीवन है पाषाण पथ,नहीं कोई सहेली।

कैद करती दुख के तिमिर को मुट्ठियों में ,
घर बसाती खुद को जलाकर,भट्टियों में।

हाथ थामे अर्धांगिनी, निभाती प्रत्येक वादा,
सात फेरे निभाने का रखती, रक्तिम इरादा।

नेह की माला लिए पाषाण रथ पर।
सीता बन देती परीक्षा अपने सत पर।

चीर देती अपनी लगन से,सिंधु का सीना,
पावनी, निश्छल, निर्मल, नीलम नगीना।

नीलम शर्मा…✍️

4 Likes · 1 Comment · 193 Views

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