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17 Feb 2024 · 1 min read

क्यों दोष देते हो

क्यों.इन हवाओं को दोष
देते हो…?

उदधि के सीने पर तो
तुम ही तूफान लाये थे
ज्वार भाटे के संग भी
तुमको रोमांच भाये थे
अब कहते हो हमसे तुम
छलनी वक्षःस्थल हो गया।।

जीवन की परिभाषा बदली
तार-तार यह भूखण्ड हुआ
अपनी गढ़ी तुमने मर्यादायें
स्खलित हो, फैली विपदाएं
अब कहते हो अभिलेखों पर
किसने पत्थर लगवा दिए।।

चलते रहे तुम चाल शकुनी
रहे अनजान महाभारत से
शिशुपाल भी हार गया था
शब्द शब्द रण, अंगारों से
अब कहते हो समर रोक दें
चौसर, कौरव, इन भालों से।।

वाचस्पति मौन है किन्तु
समिधाएँ तो अवशेष हैं
होम होम दधीचि तन का
कर्ज़ कर्ज अभी शेष है

अब पूछते हो.. कौन्तेय !
मेरा मन किस वेश में है?

सूर्यकान्त द्विवेदी

Language: Hindi
133 Views
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