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11 Feb 2024 · 1 min read

मैं दौड़ता रहा तमाम उम्र

आधुनिकता की दौड़ में जिंदगी को कर के शामिल
मैं दौड़ता रहा दौड़ता रहा तमाम उम्र
सपनो को पूरा करने जिद पर अड़ा रहा
मैं तमाम उम्र
घर , परिवार,यार इस दौड़ में कहीं पीछे रह गये
गांव,गलियों खेत इस दौड़ में कहीं पीछे रह गये
रिश्ते ,नाते ओर जज़्बात दूर कहीं दूर हो गये
आधुनिकता की दौड़ में जिंदगी को कर के शामिल
मैं दौड़ता रहा दौड़ता रहा तमाम उम्र

Language: Hindi
171 Views
Books from सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
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