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29 Jan 2024 · 1 min read

संगत

उड़ता फिरता आ के पंहुचा
शहर मे जंगली एक तोता
शोर से सराबोर वातावरण
पहली बार देखकर चौंका

कुछ गिनती के हरे पेड थे
कैसा सख्त यह जंगल था
खिलखिलाता ना कोई ताल
ना छन गिरता झरना था

उड़ता जा बैठा वो थक के
एक अस्पताल के अहाते मे
हाय – हाय और मरा मरा
सुन वो भी लग गया गाने मे

एक और उडान उसे लेके पंहुची
खुली छत मयखाने मे
भद्दी बातो को कह कह कर
वो भी लगा शोर मचाने मे

अगली उड़ान रुकी उसकी
पीपल की एक शाख पे
जो खडा था दम साधे
एक मंदिर के सामने

राम नाम का भजन सुरीला
सुन बिसराया अपनी भूख
राम नाम रटते रटते
रमा उसका मन वंहा खूब

हरे फल और सब्जी का
उसे मिला वंहा प्रसाद
भरपेट भोजन को वो पा के
उड चला जपते राम का नाम

जिस संगत मे घूमे यह मन
वैसा ही सोचे है यह तन
जो सब स्मरण करे प्रभु का
सही दिशा को बढ़ता जीवन

संदीप पांडे”शिष्य ” अजमेर

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