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27 Jan 2024 · 1 min read

अपने सपने तू खुद बुन।

अपने सपने तू खुद बुन।

जाग नींद से कुछ तो सुन,अपना भाग्य विधाता चुन।।

राग बज रहा दरबारी, इक दूजे पर सब भारी।
शहर शहर.चौपालों में, नौटंकी की गूँजे धुन।।

हम ही सबसे सच्चे हैं, बाकी कल के बच्चे हैं।
बच्चों में बच्चा बन जा, सबको गुन सबकी ही सुन।

हर पल हर क्षण रोया है लेकिन अब क्यों सोया है।
तू तो कहता आया है, बड़े व्यवस्था में हैं घुन।।

रोता है अधिकारों को, भूल रहा कर्तव्यों को।।
उठ अपना दायित्व निभा, अपने सपने तू खुद बुन।।

#सर्वाधिकार सुरक्षित ः
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
30.04.2019.

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