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23 Jan 2024 · 1 min read

यायावर

यायावर

अभिलाषा रहती है मन में,
दुनिया भर में मैं जाऊं।
यायावरी स्वभाव हमारा,
एक जगह न रह पाऊं।

कभी समंदर के साहिल पर,
कभी विपिन में मैं होता हूँ।
मरु प्रदेश की तपन कभी तो,
बर्फ श्वेतिमा में खोता हूँ।

बादल सा मनमौजी हूँ मैं,
बूंदे बन जल बरसाऊं।
यायावरी स्वभाव हमारा,
एक जगह न रह पाऊं।

कभी कभी तीरथ भी करता,
सुर के गुण मन से गाता।
स्तुति गाकर के अंतस्थल,
अनहद सुख से भर जाता।

कहीं रहूं या करूँ मैं कुछ भी
मुरशिद को सर्वोपरि पाऊं।
यायावरी स्वभाव हमारा,
एक जगह न रह पाऊं।

विचरण राम को राम बनाया,
विचरण बुद्ध को शुद्ध किया।
विचरण कर के पांच पाण्डव,
कौरव दल से युद्ध किया।

कर विचरण और बन यायावर,
खुशी के गुर तुमको बतलाऊँ।
यायावरी स्वभाव हमारा,
एक जगह न रह पाऊं।

Language: Hindi
129 Views
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