आंधियों में गुलशन पे ,जुल्मतों का साया है ,
मन के सवालों का जवाब नाही
Two Different Genders, Two Different Bodies, And A Single Soul.
आज़ महका महका सा है सारा घर आंगन,
मुखरित सभ्यता विस्मृत यादें 🙏
" अधरों पर मधु बोल "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
किसने क्या खूबसूरत लिखा है
कविश्वर चंदा झा बनाम भाषाविद ग्रियर्सन: मिथिला भाषा।
आतिशबाजी का कचरा (बाल कविता)