तुम्हें सोचना है जो सोचो
singh kunwar sarvendra vikram
धर्म के परदे के पीछे, छुप रहे हैं राजदाँ।
कुछ कुंडलियां
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
शीर्षक -शीतल छाँव होती माँ !
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
#भारतभूमि वंदे !
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
*जूते चोरी होने का दुख (हास्य व्यंग्य)*
आँखों देखा हाल 'कौशल' लिख रहा था रोड पर
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal
दूसरों की राहों पर चलकर आप
"उम्रों के बूढे हुए जिस्मो को लांघकर ,अगर कभी हम मिले तो उस
सारी उमर तराशा,पाला,पोसा जिसको..
आजा मेरे दिल तू , मत जा मुझको छोड़कर
तेरी तस्वीर को लफ़्ज़ों से संवारा मैंने ।