ये दिल न जाने क्या चाहता है...
*मानपत्रों से सजा मत देखना उद्गार में (हिंदी गजल/
सत्ता की हवस वाले राजनीतिक दलों को हराकर मुद्दों पर समाज को जिताना होगा
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
हाँ !भाई हाँ मैं मुखिया हूँ
■ ये डाल-डाल, वो पात-पात। सब पंछी इक डाल के।।
चिरंतन सत्य
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
कैसे हो गया बेखबर तू , हमें छोड़कर जाने वाले
जीवन में कई लोग मिलते हैं, कुछ साथ रह जाते हैं, कुछ का साथ छ
जादू था या जलजला, या फिर कोई ख्वाब ।
कवि और केंकड़ा ( घनाक्षरी छंद)
दया समता समर्पण त्याग के आदर्श रघुनंदन।
कसम खाकर मैं कहता हूँ कि उस दिन मर ही जाता हूँ
वो अगर चाहे तो आगे भी निकल जाऊँगा
किणनै कहूं माने कुण, अंतर मन री वात।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
उन अंधेरों को उजालों की उजलत नसीब नहीं होती,