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31 Oct 2023 · 3 min read

भक्ति रस की हाला का पान कराने वाली कृति मधुशाला हाला प्याला।

भक्ति रस की हाला का पान कराने वाली कृति मधुशाला हाला प्याला।
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मधुशाला हाला प्याला, इस काव्य संग्रह का नाम पढ़ते ही आदरणीय हरिवंश राय बच्चन जी की कृति मधुशाला की याद आ गयी और यही लगा कि बच्चन जी की मधुशाला की तरह ही इसमें भी मधुशाला के विभिन्न आयामों का चित्रण होगा। इसी उत्सुकतावश पुस्तक खोलकर पढ़ना शुरु कर दिया। किन्तु शुरुआत में ही स्पष्ट हो गया कि यह तो आध्यात्मिक रस की हाला है और इससे अपना प्याला भरना जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में सहायक हो सकता है।
आदरणीय जितेंद्र कमल आनंद जी का सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह मधुशाला हाला प्याला उन्हीं के शब्दों में एक अनुपम कृति है, जो आध्यात्मिक संचेतना और नैतिकता के भाव जगाने में सक्षम है। संपूर्ण काव्य ताटंक , लावणी व शोकहर छंद में रचित है, ओर गेयता में आनंद का अनुभव कराने में सक्षम है। भाषा सरल, प्रतीकात्मक और सुग्राह्य है।
काव्य संग्रह में निहित आध्यात्मिक काव्यात्मक कथ्य और संग्रह के नाम के संदर्भ में श्री आनंद जी स्वयं कहते हैं:

काव्यात्मक अभिव्यक्ति कमल है, सरस मधुर है यह हाला
नामकरण इसका कर डाला, मधुशाला हाला प्याला।

वास्तव में यह संपूर्ण कृति आध्यात्मिकता की ओर चलने का आह्वान करती है। भौतिकवाद की निरर्थकता से हटकर अध्यात्म के सात्विक पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता जताती है।

भौतिकता की मत पी बंदे , भक्ति सुधा से भर प्याला।
प्यार वासना स्वर्ण कामना, भले मधुर छोड़े हाला।
सच्चे सीधे पथ पर बढ़कर, जारी रख जीवन यात्रा।
दर्शायेगा रहबर पथ का, छोड़ सभी दो मधुशाला।

आध्यात्मिक जीवन में भक्ति का भी अत्यंत महत्व है। भक्ति को परिभाषित करते हुए वह कहते हैं:

भक्ति दृगों से नहीं ह्रदय से, देखी समझी जाती है।
भक्ति विकल के पोंछे आँसू, भक्ति वही कहलाती है।
भक्ति गीत है, भक्ति मीत है, प्रेम पंथ है उजियाला।
नीराजन है आराधन है, भक्ति कमल दीपक बाला। ।

कवि इसी भक्ति मय आनंद से उपजे प्रेम को अपने छंदों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचा कर उनके जीवन में भी आनंद की अनुभूति करवाना चाहता है:

उमड़ पड़े हैं भाव अनगिनत, मोती सीप सँजोता हूँ।
फसल प्रीत की उग आयेगी, बीज ह्रदय में बोता हूँ।
कभी न रीता कोई निर्जल, रह पाये खाली प्याला।
जीवन में उल्लास भरेगी, मधुशाला हाला प्याला।

निम्न पंक्तियों में कवि ने इस कृति की रचना की पृष्ठभूमि में अपने मन के भावों को व्यक्त किया है।

शब्द शब्द सौंदर्य उकेरे, तथ्य कथ्य रसमय हाला।
पृष्ठ पृष्ठ पर भाव घनेरे, मधुमय कर लाया प्याला।
छंदबद्ध रचना हो प्यारी, बस इतना ही चाहा है।
चाहत मेरी चाह आपकी, मधुशाला -हाला-प्याला।

वस्तुतः श्री आनंद जी ने यह कृति आध्यात्मिकता की उच्च अवस्था के अनुभवों को सँजोते हुए रची है, और उस अवस्था में एकमेव भाव यही रहता है कि पारब्रह्म से योग होने पर जो आनंद साधक कवि को प्राप्त है, वह सभी को प्राप्त हो, इसीलिये इन छंदों में कुंडलिनी जागृति की अवस्था, तथा आत्माक्षात्कार की स्थिति के आनंद का भी वर्णन आया है, सद्गुरु की कृपा के बिना यह संभव नहीं, इसीलिये गुरु की महत्ता का भी वर्णन है। सद्गुरु की कृपा से जब साधक निर्विचार समाधि तक पहुँच जाता है तब पारब्रह्म से एकाकार हो जाता है और निरानंद की स्थिति में प्रभु के प्रेम के रस का पान करता रहता है।
यही आनंद से पूर्ण प्रेम रस ही हाला है, अपनी भौतिक देह ही प्याला है, और यह चराचर जगत मधुशाला है।
इतनी अच्छी कृति की रचना के लिये आदरणीय आनंद जी को बहुत बहुत साधुवाद है, परमात्मा का उन पर विशेष अनुग्रह है तभी इतनी उत्तम कृति उनकी लेखनी से अवतरित हुई।
इन्हीं शब्दों के साथ संग्रह के रचयिता आदरणीय जितेंद्र कमल आनंद जी को ह्रदय से बधाई देता हूँऔर प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि इसी प्रकार उनकी रचनात्मकता बनाये रखें ताकि वह इसी प्रकार और भी पुस्तकें रच सके और हिन्दी साहित्य को समृद्ध कर सकें।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG – 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद (उ.प्र.)
244001

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