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19 Sep 2023 · 1 min read

** राह में **

** गीतिका **
~~
मन भटकता रहा प्यार की चाह में।
शूल बिखरे मिले हर तरफ राह में।

जब चुभे तो कदम थे ठिठक से गये।
कीमती पल सिसकते रहे आह में।

बिन बताए कभी वक्त बीता मगर।
सोचते रह गये सिर्फ परवाह में।

मन लुभाती रही खुशबुएं थी बहुत।
बस कदम थे बढ़े खूब उत्साह में।

चाहतें सब लहर में उलझती रही।
डूब पाए नहीं सिंधु की थाह में।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/०९/२०२३

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