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21 Jul 2023 · 1 min read

द्रोपदी फिर.....

द्रोपदी फिर त्रस्त हुई
भरी सभा मे निर्वस्त्र हुई
है दुर्योधन दुश्शासन खड़े
विकराल हँसी हँसते बड़े

थे सभा सैकड़ों लोग खड़े
चुप थे या मृत बेहोश पड़े
निरीह जीव सा उसे सताते
झूठा,पौरूष दम्भ दिखलाते

निर्दयता करते शर्म न आई
क्रूरता यूँ तुमने दिखलाई
जन्म दिया था जिस माता ने
कोख उसकी तुमने लजाई

असुर सी प्रवृत्ति दिखलाई
क्रुन्दन उसका न दिया सुनाई
तड़पकर चीखती तो होगी
लाचारी पर बिखरी होगी

कहीं तो कन्या पूजी जाती
कहीं स्त्री अबला कहलाती
हाय ये मृत सभ्यता कैसी
गति उसकी नही एक जैसी

हाथ पे एक धागा होगा
सूत्र बहन ने बाँधा होगा
हाथ फिर कैसे यूँ उठ गए
अस्मत उस बहन की लूट गए

खत्म करो ऐसी व्यवस्थाओं को
सजा दो उन गुनहगारों को
कब स्त्री बेख़ौफ़ मुस्कुराएगी
मानवता वही विजयी होगी

बंद करो इन अत्याचारों को
न बिखराओ इन सितारों को
अंत इक दिन ही दिखलायेगा
धरा से निशान मिट जाएगा।।

✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

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