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4 Jul 2023 · 1 min read

सावन महिना

सावन महिना
सावन महिना भोंभरा तिपत हे
बरषा कहां नंदागे
अब आके बचाले अवघड़ दानी
मोर मति छरियागे

चारों कोती हावय गरमी अड़बड़
कुहक हावय भारी
तरबतर पसीना में होवत हावय
धरती के नर नारी

रोवत हावय सब रूख राई अऊ,
भाप बनत हे सब पानी
घिंदोल मेचका अब मुंह फारत हे
सुरता आवत हे नानी

अब आके बचाले भोले बाबा
तोला कईथन अवघड़दानी
सावन महिना भोंभरा तिपत हे
का होंगे,गिरत नइये पानी।।

पान सुपारी अब तोला चढाबों
नरियर फाटा ,बेलपतिया
धोवा धोवा चाऊंर ल चढाबों
जल चढाबों, महानदीया

कब आबे तेला बतादे,नंदी ल संग लाबे
गौरी माता पारवती ल, संगे म धर आबे
सावन सम्मारी एसो, अठदिनिया,होवत हे
लम्बोदर घलो ल , परिवार सहित तै आबे

विनित
कवि डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

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