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20 Sep 2020 · 1 min read

मेरा चश्मा

मेरा चश्मा
रोज देखता
एक सुनहरा सपना
कभी इठलाता
कभी सहम जाता
नज़र बचाता
आंख उठाता
यौंही
बादलों में
घिर जाता
घने कोहरे सा
नित् आता
मेरा जीवन
उजियारा कर जाता
रंगीन सी
बदली बदली
जिन्दगी में
महकते पुष्प सा
रोज़ करीब आ जाता
दर्द छुपाता
उच्छवास
रफ़्त बदल
जीवन
सतत बनाता

मनोज शर्मा

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