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15 Jun 2023 · 1 min read

कभी-कभी

कभी कभी
कभी कभी खुद से भी हस्ती!सवालात कर लिया करो
वजुद में हम कहाँ बैठे हैं हुजुर जरा!पुछ लिया करो हर आखं का इशारा अपना नहीं!ये भी जान लिया करो जो दिखता है दूर से कोई अपना आज आता! वो दुश्मन निकल जाये पता नहीं परख लिया करों….
यूँ ही किसी को जाने बिना अपने घर आने न दो
जो कर रहा चुपड़ी बातें घुसने को उससे दुर रहो
बड़े शातिर हैं ये जो अपनेआखंका काजल चुरा लेतें है
सभंल के पकड़ना तुम हाथ विश्वास का!वो घात कर देगें कभी भी जरा समझा करो….
आपका अपना ही बैजान बोलता शब्द
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी

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