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15 Jun 2023 · 1 min read

बारी बारी से अपनों को खोता रहा

रात जगता रहा दिन भर सोता रहा,
बारी बारी से मैं अपनों को खोता रहा,
बादलों के हुकूमत जब हुई चांद पर,
चांद छुप छुप कर अंधेरे में रोता रहा,

जो ना मांगा मिला मुझको सौगात में,
जिसको चाहा वो नामुमकिन होता रहा,
प्रेम में मैने अपने गले से लगाया जिसे
पीठ पर वह ही खंजर चुभोता रहा।।

Language: Hindi
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