Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 Jun 2023 · 2 min read

खेल और यौन शोषण : विकृत मानसिकता

दरिंदगी का आलम देखो,
खेल और यौन शोषण में छिपे रंज देखो।
खेल की लड़ाई में बह जाते हैं खून,
यौन शोषण के घाव देखो, न रास्ता, न सुन।

क्रीड़ा के मैदान में खेलती हैं उमंगें,
पर यौन शोषण के डर में रहती हैं अंधेरे।
दर्द के संगीत की आवाज़ ऊँची है,
पीड़ा के गीतों में छिपा जलने वाले।

खेल जगत में स्वाभिमान की बुनियाद,
यौन शोषण की दहशत ने ध्वंसाओं को बढ़ाया।
रंग और जाति का खेल में कोई स्थान नहीं,
लेकिन यौन शोषण ने खुद को सजा दिया।

दिल दहल जाता है इस खेल की बात सुनकर,
अंजाम सोच कर आंसू बहाता है।
परिवर्तित होती हैं सपनों की राहें,
जब यौन शोषण का भारतीय स्त्री झुकाता है।

उजियालों में आँखें नम होती हैं,
जब यौन शोषण के बिखरे हुए दिल मिलते हैं।
भारत की राष्ट्रीय चेतना सजी हुई है,
खेल और यौन शोषण के विरुद्ध एक संगीत बजता है।

खेल की दीप्ति थी भारत में,
मान-सम्मान की ऊँचाईयाँ थीं।
परिस्थितियाँ बदल गईं कहाँ,
यौन शोषण ने जीवन छीन लिया।

स्त्रियों की ऊर्जा और हौसले को,
अंधकार ने घेर लिया।
पुरुषों की राजनीति ने लहराया,
खेल का आदर्श तार छीन लिया।

गतिविधियों के मैदानों में जोश,
अब शोषण की आग में जल रहा है।
आंधी से झूल रहे हैं सपने,
खिलाड़ियों का अधमरण सह रहा है।

हाथों की ताकत बनी राजनीति की हथियार,
खेल के पवित्र रंगों को भटका दिया।
खिलाड़ियों की आस्था और गर्व को,
अपमान की लहरों में बहा दिया।

दर्दनाक यौन शोषण की आग में,
दीप्ति बुझ गई है।
खेल के संघर्ष में जो जोश था,
वह आज दर्द भरी आहों में ढह गया।

भारत के खेल भूमि में सहने को,
यौन शोषण के आंधियाँ चल रही हैं।
हमेशा बरदाश्त किए गए अन्याय को,
आज भी खेल के सिर पर तलवार चल रही है।

Loading...