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11 Jun 2023 · 2 min read

दिल,एक छोटी माँ..!

दिल,एक छोटी माँ..!
( छंद मुक्त काव्य )
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ये दिल क्या है..?
एक मुठ्ठी भर मांसपेशियों का उछल कूद,
या कोई जीवंत रिश्ता ।
गौर से सोचो यदि,
तो ये इस तन की एक छोटी मांँ सी है।
जरा सी गड़बड़ हो जाए इसके ताल और लय ,
तो झटके देने लगते इसकी दोनों भुजाएं ,
अलिंद और निलय ।
फिर तो बिलख-बिलख तन करता है अदावत ,
ये सब जानते हुए भी,तो हम नहीं करते ,
अपने दिलरुपी माँ की हिफाजत ।
देखो तुम्हारे इस मुट्ठी भर छोटी सी माँ ,
तुम्हारा कितना ख्याल रखती ।
चौबीसों घंटे रक्त से गंदगी हटाती है वो ,
पवनदेव से वायु मांग
शोणित प्रवाह से उसे ,
तेरे शरीर के रग रग में पहुँचाती है ।
सफाईकर्मी की तरह वो ,
अतिरिक्त जल और गंदगी को सही जगह पहुँचाकर ,
उसके सही निस्सरण की व्यवस्था करती है ।
बेचैन रहती है ,
असंख्य कोशिकाओं के पोषण हेतु हर समय ।
लेकिन कुछ बातें पसंद नहीं है उसे ,
नफरत,ईर्ष्या और क्रोध ।
इसके आवेश में आते ही ,
अनियंत्रित होकर धड़कने लगती है यह।
सौम्य शांत स्वभाव हो बालरुप तन का ,
सिर्फ इतनी सी आरजू लिए ,
जीवन भर बिना रुके काम करती ।
लेकिन इस छोटी मांँ में एक बड़ी कमी भी है ,
ये जान ले तो जरा ।
ये कभी ब्रेक लेकर,दोबारा काम पर नहीं लौटती।
रुठ जाती है,तो कोई इसे मना नहीं सकता।
और फिर वह अपनी गोद से,तुम्हें हटाती भी नहीं।
अपनी गोद में सुलाये ही चली जाती ,
अनंत यात्रा के लिए ।
बहुत प्यार जो करती तुमसे ,
जुदाई कैसे सहन हो भला ।
इसलिए इहलोक परलोक ,
दोनों में तेरा साथ नहीं छोड़ती ।
तो चलो आज से कसम खा ले ,
इस छोटी माँ को असमय रुठने न दे।
ख्याल रखें हर समय ,
स्वस्थ आहार,स्वस्थ विचार ,
और स्वस्थ अपनी छोटी माँ ।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )

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