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6 Jun 2023 · 1 min read

शहर

कौन कहता है, सो रहा है शहर,
कितने किस्से तो कह रहा है शहर।

किसी मजलूम का मासूम दिल टूटा होगा,
कितना संजीदा है, कितना रो रहा है शहर।

ये सैलाब किसी दरिया की पेशकश नहीं,
अपने ही आँसुओं में बह रहा है शहर।

है गर शिकायत कि शहर क्यों साफ़ नहीं होता,
तो जानो क्यों सबके पाप ढो रहा है शहर।

पिछली रुत में इस कदर ये शहर घायल हुआ,
कि इस रुत में भी जख्म कुरो रहा है शहर।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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