Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jun 2023 · 4 min read

महात्मा ज्योतिबा फुले

@@@@@ ज्योत जलाई जिसने बुद्धि की
(महात्मा ज्योतिबा)@@@@@

एक और एक जनता दो होते हैं ,दो से ही ये सृष्टि रची है
दो कि शक्ति जानोगे, तो दो नहीं सौ हैं ,क्या मेरी बात आज सही है
तुम्हे सोचना नहीं तुम्हें बोलना नहीं, बस मेरी बात पर ध्यान देना है
ग्यारह ही जोत का उत्पत्ति काल है
जोत जलाई जिसने बुद्धि की
उसे ज्योतिबा कहते हैं ……..

ऐसी दिव्य आत्मा को मेरा प्रणाम है…

साँच जिसकी जान है साँच ही जुबान है, देश और काल की परवाह नहीं
हिम्मत देखो उसकी सच को कहा सच कहने वालों का जीना है कम
गालियों से दुनिया भरती है पेट संघर्षी है उसका जीवन फिर भी ना हारा
आज कहूंगा मैं कल कहूंगा और मेरे दोस्तों दिल खोल कहूंगा

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही ये सृष्टि रची है
दो की शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ है क्या मेरी बात आज सही है ……….

लोक लाज की वो परवाह नहीं करता ,सत्य बात कहने से वो नहीं डरता
सत्य कहने वालों को दुनिया नहीं मानती झूठे ढोंगी पंडितो पै पैसा खूब लुटाती
कैसे कहूं बात तुम सोचते नहीं जोतिबा की ज्योत चहुंओर फैल गई
वाह री दुनिया, आंख बंद करके, लात मारते विधवा को तुम ,सती करते
आग में जला, वो राख होती है ,और जीवन खात्मा, क्या उसका जीना, जीना नहीं है

ऐसी थोथी रीतियो को, जिसने है मेटा
भारत माँता का, वो ज्योतिबा है बेटा

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही ये सृष्टि रची है
दो कि शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ हैं क्या मेरी बात आज सही है …….

शोध नहीं करती दुनिया हाँ मानती झूठे पंडितों की बात केवल सही मानती
अवसरवादी ग्रंथों में लिखा है ये हम जन्मे मुख से बाकी हाथ पैर भुजा है
नीची जाति वालों का पानी नहीं पीना, बिल्कुल बेकार है
पानी जिन्हें पीना पीने नहीं देते ,कुवै पै सरेआम दण्ड देते
मन में है मेल चाहे पूज लो भगवान को, वो नहीं करेगा तेरा कोई भला

चेतना की ज्योति को जिसने प्रसारा
भारत मां का पुत्र ज्योतिबा प्यारा

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही ये सृष्टि रची है
दो की शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ हैं क्या मेरी बात आज सही है …….

आज देखो दुनिया में बनती नहीं, चहुंओर स्वार्थों में अंधी हुई
वाइफ पड़ी अधिक तो ,सर्वेंट समझती सारे काम उससे करवाती
सोच यारो उनकी सही सोच हमरी गई हम आदी हो गए
प्रकोप समझो, यह जोग नहीं भोग है, सत्य दुनिया मानती नहीं
पीर औलिया के दुनिया चक्कर काटती, मुझको मिले, बस मुझको मिले
दुनिया जाए भाड़ में किसी की नहीं सोचते, एक पति गया तो दूसरा सही
सोच हमारी अब गंदी हो गई ,हां जी गंदी हो गई सात जन्मों का तलाक हो गया परमेश्वर के खेल में पैसा अटक गया
आगे मेरी बात को ध्यान से सुनो सावित्री और महात्मा को आज चुनो

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही यह सृष्टि रची है
दो की शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ है क्या मेरी बात आज सही है ……

पत्नी कैसी हो, अब तुम्हे मैं बतलाऊंगा, राम की सीता की कहानी जाने दो
विश्वास नहीं बिकता, विश्वास टिकता है लोगों की धमकी से वो नहीं डरती
मरना आज है और काल मरना है दम्भी समाज का प्रकोप झेला
सावित्री ने फूले का, साथ नहीं छोड़ा,अपवादों ने खूब परेशान है किया
कंकड़ पत्थर मिट्टी उसके ऊपर खूब डाली
दृढ़निश्चयी आत्मविश्वासी उसनेकुछ करने की ठानी
पति रहे ,मेरा भूखा, मैं भूखी रह जाऊंगी
मेरा बल पति की इच्छा, पार उसे कर जाऊंगी कौन कहेगा किसको पता था क्या ऐसे भी होगी नारी
कौन जानता, कौन मानता आज सबके मुख वह भारत मां प्रथम शिक्षिका नारी

वैभवता को छोड़ दिया वो उर्मि की ज्योत् फैली भारत मां की सावित्री बेटी वो नव विद्या देवी

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही यह सृष्टि रची है
दो की शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ हैं क्या मेरी बात आज सही है …..

इतनी पीड़ा इतने संकट झेले थे जीवन में, घर से बेघर होकर निकले
जगह-जगह संताप मिला भूखे प्यासे रहे दिनों तक विश्वास जमा था उनका
लोग कहा करते ये दोनों तड़प तड़प के मर जाएंगे

हिम्मत देखो उन दोनों की दोनों ने किया धमाल बच्चे पढ़ेंगे होगा विकास पाठशालाएं दी होल

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही ये सृष्टि रची है
दो की शक्ति जानोगे तो दो नहीं सो हैं क्या मेरी बात आज सही है …….

वारी री दुनिया खेला अजब है
पग पग पर पथरीली सेज है
आंख नम होती हैं जब पढ़ते हैं जीवनी
सच कह दूं मैं जीवन संघर्षी
एक वसु नक्षत्र फूले था
आज साकार बैठी मूर्ति महात्मा गहलोत वसु नक्षत्र है ऐसी परम चेतना को
मेरा परम वसु प्रणाम है

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही यह सृष्टि रची है
दो कि शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ हैं क्या मेरी बात आज सही है………।

माँ पाँचो को पाल सके एक न पाँच पाल सकें
वाह री दुनिया सोच कहाँ है तड़प तड़प के जी रहे
ना मिले दवाई ना उपचार दिनोदिन हो रहा बार नमन करो उस गहलोत जी बन गया वो जनता श्रवण कुमार

कोई कहीं वो दिव्य आत्मा कोई कहे साकार भगवान
मानवता का जो भी हितैषी वो ही साक्षात् भगवान

एक और एक जनता दो होते हैं दो से ही ये सृष्टि रची है
दो की शक्ति जानोगे तो दो नहीं सौ है क्या मेरी बात आज सही है
तुम्हे सोचना नहीं तुम्हे बोलना नहीं बस मेरी बात पर ध्यान देना है
ग्यारह ही जोत का उत्पत्ति काल है
जोत जलाई जिस ने बुद्धि की
उसे जोतिबा कहते हैं
ऐसे दिव्य आत्मा को मेरा प्रणाम है ………..

सद्कवि

प्रेम दास वसु सुरेखा

1 Like · 214 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

दर्द सीने में गर ठहर जाता,
दर्द सीने में गर ठहर जाता,
Dr fauzia Naseem shad
- दिल ये नादान है -
- दिल ये नादान है -
bharat gehlot
यदि कोई व्यक्ति कोयला के खदान में घुसे एवं बिना कुछ छुए वापस
यदि कोई व्यक्ति कोयला के खदान में घुसे एवं बिना कुछ छुए वापस
Dr.Deepak Kumar
अर्थार्जन का सुखद संयोग
अर्थार्जन का सुखद संयोग
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मधुमास में बृंदावन
मधुमास में बृंदावन
Anamika Tiwari 'annpurna '
यह जिंदगी मेरी है लेकिन..
यह जिंदगी मेरी है लेकिन..
Suryakant Dwivedi
लाज़िम है
लाज़िम है
Priya Maithil
"खुद में खुद को"
Dr. Kishan tandon kranti
जय माँ शारदे
जय माँ शारदे
Arvind trivedi
🙅अचरज काहे का...?
🙅अचरज काहे का...?
*प्रणय प्रभात*
Love is
Love is
Otteri Selvakumar
3518.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3518.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
दोस्ती एक पवित्र बंधन
दोस्ती एक पवित्र बंधन
AMRESH KUMAR VERMA
Gujarati Poetry | The best of Gujarati kavita & poet | RekhtaGujarati
Gujarati Poetry | The best of Gujarati kavita & poet | RekhtaGujarati
Gujarati literature
"आए हैं ऋतुराज"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
क़ैद-ए-जाँ से वो दिल अज़ीज़ इस क़दर निकला,
क़ैद-ए-जाँ से वो दिल अज़ीज़ इस क़दर निकला,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
दुनिया में लोग ज्यादा सम्पर्क (contact) बनाते हैं रिश्ते नही
दुनिया में लोग ज्यादा सम्पर्क (contact) बनाते हैं रिश्ते नही
Lokesh Sharma
प्यार या तकरार
प्यार या तकरार
ललकार भारद्वाज
छठ पूजन
छठ पूजन
surenderpal vaidya
सकारात्मक पुष्टि
सकारात्मक पुष्टि
पूर्वार्थ
रवींद्र नाथ टैगोर
रवींद्र नाथ टैगोर
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
10. Fatherly Throes
10. Fatherly Throes
Ahtesham Ahmad
"घड़ी"
राकेश चौरसिया
*नारी के सोलह श्रृंगार*
*नारी के सोलह श्रृंगार*
Dr. Vaishali Verma
अधरों के बैराग को,
अधरों के बैराग को,
sushil sarna
बचपन मेरा..!
बचपन मेरा..!
भवेश
हरियाली की तलाश
हरियाली की तलाश
Santosh kumar Miri
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी
सत्य कुमार प्रेमी
क्या सबकुछ मिल जाएगा जब खुश हो जाओगे क्या ?
क्या सबकुछ मिल जाएगा जब खुश हो जाओगे क्या ?
पूर्वार्थ देव
Loading...