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31 May 2023 · 1 min read

निशा सुन्दरी

शान्त स्निग्ध उज्जवल परिवेश बना
स्वागत में श्व़ेत वेश है बना

नभ तारकमय होकर अब सज रहा
शशि मुख पर घूँघट डालें जँच रहा
शरद् श्रतु की आभा नभ से धरा तक है छाई
ओस की चादर सब ओर है समाई

सौंदर्यमय परिवेश में सज धज कर भेष में
जब निशा सुन्दरी आकाश मार्ग से उतरकर
नव वधु सी पद्चाप करती आ रही
सिहर सिहर सकुचाती हुई सी आ रही

जन मानस की पीड़ा हरने को
नव ऊर्जा फिर से भरने को
नव राग ह्रदय में छेड़ने को
देखो निशा सुन्दरी है आ रही

मधुर तान सी बजती है
स्वप्नों की दुनिया सजती है
सब ओर मनोरम छवि छा जाती है
जब निशा सुन्दरी आ दस्तक देती है

नेहा
खैरथल (अलवर) राजस्थान

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