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27 May 2023 · 1 min read

___2___किसे अपना कहूं?

हर तरफ़ एक ही फ़साना है,
हमारा दिल उनका दीवाना है।
ये जहां हमारे काबिल नहीं,
इन्हें अलग दुनियां बसाना है।
टूटा तारा नहीं है किस्मत में,
घर उनको कांटों से सजाना है।
जब से सुने हैं मैंने ये अफसाने,
तब से सोचने बैठा हूं,
किसे अपना कहूं?

तमन्ना है सबको कुछ न कुछ पाने की,
दौलत है किसी को शोहरत कमाने की।
फिक्र किसको है प्रखर इस ज़माने की,
कोशिशें जारी हैं ख़ुद को आजमाने की।
क्या ज़रूरत है रोते को अब हंसाने की,
उन्हें तो पड़ी है अब वायदा निभाने की।
मैखाने में अभी कमी है संगत की,
जबसे देखा नजारा सोचता हूं,
किसे अपना कहूं?

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