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23 May 2023 · 1 min read

दिहाड़ी मजदूर

अब भोर हुई बस यही चिन्ता
संध्या भोजन का क्या होगा।
कुछ कला नहीं जिन हाथो में
जिसने शिक्षा न पाई है कभी
दिहाड़ी मजदूरी कर के ही तो
अपनों की क्षुधा मिटाई जाती
भिक्षा कभी न मांगना आता
क्योंकि उसमें अभिमान बाकी
एक कुटुम्ब है दो बच्चे माँ वह
पत्नी भी उसके साथ जाती
पुरानी साड़ी को वृक्ष बांध कर
दो माह नन्हे बच्चे को सुलाती
चिलचिलाती दोपहरी में वह
ऐसे ही प्रतिदिन काम है करती
दिवस सप्ताह और वर्ष बीतते
उसके ऐसे ही काम करते करते
कड़े परिश्रम और चुनौती से
प्रतिदिन पेट अपना भरने वाले
जीवन की कठोरता का अनुभव
क्या कर सकेंगे ऐ. सी. वाले ?

– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’

Language: Hindi
454 Views
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