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23 May 2023 · 1 min read

स्वच्छंद प्रेम

स्वच्छंद प्रेम शर्तों पर नहीं किया जाता,
न किया जाता है अमीर-गरीब,
जात-पात के बंधनों में बंध कर।
……….
यह तो एक नवीन और निश्चल अनुभूति होती है,
जो हृदय से निकलकर हृदय तक पहुंचती है,
जिसमें दो अनमोल रिश्ते, बिना किसी दुराव,
बिना किसी नियम-शर्तों के जुड़ते हैं।
……..
स्वच्छंद प्रेम में दो हृदय का होना आवश्यक है,
एक हृदय जो दूसरे की अनुभूति का अनुभव कर सके,
बिना किसी लालच उम्मीद के,
सर्वस्व न्यौछावर करने का मादा रखे।
…………..
यही प्रेम किया था मीरा ने श्याम से,
भीलनी ने राम से,
सीरी ने फरहाद से, लैला ने मजनू से,
जिसमें देना प्यार का आदर्श होता था,
न कि कुछ पाना।
…………
वास्तव में पाना स्वच्छंद प्रेम का आधार कतई नहीं है,
देना और प्रेम करने वाले का भला चाहते रहना,
स्वछंद प्रेम की मूलभूत आवश्यकता है।

घोषणा – उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। यह रचना पहले फेसबुक ग्रुप या व्हाट्स ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।

डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।

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