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21 May 2023 · 1 min read

" भूलने में उसे तो ज़माने लगे "

ग़ज़ल

बेवफ़ा ख़्वाब अब हैं सताने लगे !
याद सोई हुई फ़िर जगाने लगे !!

राह चुन कर नई मंजिलें जब चुनी !
जो सखा हैं हमें आजमाने लगे !!

जब सगा बन कुरेदे कभी दिल यहाँ !
ज़ख्म सारे मेरे मुस्कराने लगे !!

हो फ़तह दूर जब भी खड़ी सामने !
ये थके से कदम भी बहाने लगे !!

पास कोई खड़ा जब धड़क को सुने !
तीर साधे नज़र जो निशाने लगे !!

आग किसने लगाई हुआ तय नहीं !
पर सजा लोग जी भर सुनाने लगे !!

घूँट अपमान के जो “बिरज” पा गया !
भूलने में उसे तो ज़माने लगे !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )

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