क्यों…?
क्यों…?
// दिनेश एल० “जैहिंद”
क्यों होती आँगन की दीवार ऊँची ?
क्यों कोई नारी घुँघट करती है ?
क्यों दरवाजे पर पर्दा झूलता है ?
क्यों विवाहिता सिंदूर करती है ?
जो अपनी इज्जत बेच आए हैं
जो लाज को ताक रख आए हैं
ये विदेशी…
क्या हमें इनके उत्तर बतलाएंगे !
क्यों एक मर्द-एक औरत का बंधन है ?
क्यों चहार-दीवारी लोग उठाते हैं ?
क्यों धरा पर गृहस्थी का शुभारंभ है ?
क्यों दिलोजान से रिश्ते लोग निभाते हैं ?
जो नारी की गरिमा को ना पहचाने
जो नारी की अस्मिता को ना जाने
ये विदेशी…
क्या हमें इनके उत्तर बतलाएंगे !
क्यों इनसे परिवार की शुरुआत होती है ?
क्यों एक ही उदर से स्त्री-पुरुष जनमते हैं ?
क्यों भाई-बहन का रिश्ता होता है ?
क्यों परिवार से घर-समाज बनते हैं ?
जो रिश्तों की कोमलता को न समझे
जो परिवार की महत्ता को न माने
ये विदेशी…
क्या हमें इनके उत्तर बतलाएंगे !
क्यों दिल में प्यार मचलता है ?
क्यों मन में प्रीत उमड़ती है ?
क्यों इक्छाएं तुम्हें सताती हैं ?
क्यों आँखें प्रीतम को ढूढ़ती है ?
जो नजरों की भाषा न पढ़ पाए
जो दिल की भावनाओं को न जान पाए
ये विदेशी…
क्या हमें इनके उत्तर बतलाएंगे !
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दिनेश एल० “जैहिंद”
18. 08. 2019