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23 Sep 2022 · 1 min read

हर पल मरते रोज हैं

****हर पल मरते रोज़ हैं****
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हर पल हर दम मरते रोज़ हैं,
गम पी कर भी करते मौज हैं।

औरों को खुश कर देखा यहाँ,
पर खुद के सिर रहता बोझ है।

लालच में डूबे रहते सभी,
अवसरवादी जन की फ़ौज है।

दुख सुख का साथी कोई नहीं,
यह पूरी ना होती ख़ोज है।

मनसीरत दुनियादारी देख ली,
अपना दिल सहने की हौज़ है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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