रविवार का दिन, आज फैक्टरी में अवकाश होने के कारण दिल से एक आवाज आई चलो कही भ्रमण
रविवार का दिन, आज फैक्टरी में अवकाश होने के कारण दिल से एक आवाज आई चलो कही भ्रमण को चलें। दिल के हाथो मजबूर मै निकल पड़ा , कीन्तु जाना कहाँ है इस विषय पर विचार मग्न मैं कब जन्तर मंतर पहुँच गया पता ही नहीं चला।
जंतर मंतर दिल्ली का वो स्थल जहाँ लोग अपनी मांगे लेकर आशा की दीप जलाने को तत्पर यहाँ आते है ।
इस जगह पे कईयों के सपने परवान चढे तो कईयों के तार- तार होकर बिखर गये।
क्या अजीब नजारा था इस जगह का, कहीं किसी मंच पर आरक्षण हटाने की मांग हो रही थी तो किसी मंच से आरक्षण पाने की।
कोई दलित एक्ट का विरोधी था तो कोई सवर्ण विरोधी समझना कठिन था कि की इनमें से किसकी मांग जायज है और किसकी नाजायज, किसकी मांग मान ली जायेगी और किसकी नहीं।
राजनीतिक आकाओं के तर्ज पर सोचे तो उनकी ही मांग ज्यादा मजबूत लगी जो बोट बैंक के प्रबलतम आधार बिन्दु है।
यह मै इसलिए कह रहा हूँ क्योकि राष्ट्र हित से कही अधिक राजनीतिक गलीयारे में
सत्ता पाने की जद्दोजहद महत्व रखती है।
वहीं दुसरी तरफ एक मंच सरकार के कार्यों का विरोध कर रहा था तो दुसरा मंच गुणगान ।
किन्तु इन सभी मंचों पर एक बात समान्य लगी इन मंचो पे जो लोग भी आसीन थे ज्यादा से ज्यादा मंच शेयर कर रातों रात प्रसिद्धि पाने की हर संभव प्रयास मे तत्पर दिखे।
प्रसिद्धि पाना कौन नहीं चाहता ?
लेकिन किस किम्मत पर यह तथ्य महत्वपूर्ण है।
आज यही हाल आरक्षण विरोधियों का है
सब अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे है।
कोई भी एकमत नहीं आज किसी के साथ ,कल किसी और के साथ ; किसी और मंच पे।
आज की लड़ाई अधिकारों को पाने से अधिक व्यक्तिगत प्रसिद्धि पाने की हो गई है।
अगर यही हालात रहे तो जनाधिकारो का रक्षा असम्भव होता चला जायेगा। असमाजिक तत्व ऐसे ही हमपे हावी रहेंगे।
अब समय आ गया है एक मंच पर एकत्रित होकर एकजुट प्रयास करने की ।
आज हमारे देश में किसी भी समस्या पर कोई भी एकमत नहीं है।
सभी के पास अपना- अपना सुझाव है लेकिन उस सुझाव को अमली जामा पहनाने का समय किसी के पास नहीं है।
सब यहीं सोचते है कि कोई दुसरा जंग लड़े और हम विश्लेषक बन उसके द्वारा किये जा रहे प्रयासों का विश्लेषण कर अपनी जिम्मेदारी से यूं ही निजात पा जाये।
परन्तु अब अगर अपने इस दकियानूसी सोच को नहीं बदला गया तो वो दिन दूर नहीं की हम न घर के रहेंगे न घाट के।
विचारीये, सोच को एक सही एवं सार्थक क्षेत्र में तब्बदिल कीजिये।
… संजीव शुक्ल ‘सचिन’