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25 Jun 2022 · 1 min read

अर्धांगिनी की विरह व्यथा

सुनो,
आज
बाथरूम की लाइट
किसी ने जली हुई
नहीं रख छोड़ी हैl

न उसके दरवाजे की
नॉब पर
किसी ने गीले
हाथों की छाप छोड़ी है।

तुम्हारा तौलिया भी कमबख्त
बिस्तर की बजाय करीने
से खूँटी पर जा चढ़ा है,

न तकिया ही बेतरतीब है
और न चादर पर कोई
नया नक्शा पड़ा है।

घर के ड्रावर्स में
एक भी अधखुला नहीं है
अलमारी का दरवाजा भी
मुआ ,
बंद अपनी जगह पर ही है।

न चाबी सोफे पर पड़ी है
न चप्पलें ही
एक दूसरे पर चढ़ी हैं,

सोफे के कुशन भी मुँह झुकाये
अदब से खड़े हैं,
और नकचढ़े कप व ग्लास भी
सिंक में आज
सीधे ही पड़े है।

मैं किस पर झुंझलाऊँ,
गुस्सा करूँ या बड़बड़ाऊँ
ये समस्या अब आके
सर पे खड़ी है

चेहरे की मांसपेशियाँ भी
दो दिनों से
न सिकुड़ी न चढ़ी हैं,

मेरी इस घोर व्यथा पर
कुछ तो तरस खाओ
चलो, नहीं लड़ूंगी
एक दो दिन

प्लीज,
टूर से जल्द वापस
आ जाओ😊😊😊😊😊

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