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5 Jun 2022 · 2 min read

पर्यावरण पच्चीसी

पर्यावरण पंचादश दोहावली
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बदल रहा पर्यावरण , बदल रही हर बात।
बदल रहे सब जीव है,बदली आदमजात। 1
(पान)
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पहली जैसी भोर कब, पहले जैसी शाम।
बदल रहा परियावरण, हर पल आठो याम। 2

(गयंद)

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कूड़ा करकट गांव में ,लगा हुआ अम्बार।
बिगड़ रहा परिआवरण,कैसे हो निस्तार। 3

(गयंद)
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जंगल भी अब कट रहे, चारों ओर विनाश।
पर्यावरण निपट रहा , कैसा आज विकास। 4

(पयोधर)

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ई कचरे से अट रहा, यह कितना भू भाग।
खतरनाक पर्यावरण,मानव अब तो जाग। 5

(पयोधर)

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सागर लगते तड़पते,नदिया करें पुकार।
स्वच्छ कहाँ पर्यावरण,हर तबका बीमार। 6
(दोहा )

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पॉलिथीन से आदमी ,पशु का करे शिकार।
रिपुता पर्यावरण से , आदत से लाचार। 7

(हंस)

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ओजोन परत में छिद्र , बढ़ता जाए रोज।
फ़रीज़ ऐसी खो रहे ,पर्यावरणी खोज। 8
(नर )

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कारें मोटर देखिये,उगले धुँआ अपार।
बेचारा पर्यावरण ,करता हाहाकार। 9
(करभ)

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हे मानव तू सँभलजा, कर ले साज सँवार।
बिगड़ा जो पर्यावरण, निश्चित बंटाढार ।10
(पयोधर )

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खान पान अरु वास में, रख ले थोड़ा ध्यान।
स्वच्छ रहे पर्यावरण, हो सबका कल्यान। 11
(गयंद )

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‘मधु’ लगा जग घूमने , मांग रहा है खैर।
पर्यावरण से दोस्ती, करो भूल सब बैर। 12
( हंस)
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सूखे गर जंगल मिले, ,काटो पेड़ हज़ार ।
पर्यावरण के वास्ते, ठानो जग से रार।13

( हंस)
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काटो पेड़ पचास तो ,पौध लगाओ साठ।
मस्त रहे पर्यावरण , बनें जगत के ठाठ। 14

( हंस)
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पसरा कचरा सब जगह,क्या जंगल क्या नीर।
पर्यावरण पहाड़ का , कहाँ सुगंध समीर। 15

(पान )
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पर्यावरण खोज रहा,अपनी ही पहचान।
किस विधि मैं अच्छा रहूँ,अब जाने भगवान।16

(पयोधर)
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बना जगत गतिमान जब,जायज़ सब बदलाव।
एक रहे पर्यावरण , लगे ख्याली पुलाव। 17

(बल )
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परिवर्तित पर्यावरण , है आवश्यक अंग।
जो यह जग स्थिर होयगा, जगत बने बदरंग।18
(मच्छ)
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करो कर्म तो कठिन कब,कौन कहाँ पर काम।
पर्यावरण बिगड़ गया, व्यर्थ करो बदनाम। 19

(त्रिकल)
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बदलेगा पर्यावरण,इसमें मीन न मेख।
बदल अटल संसार में,चली आ रही रेख। 20
(पयोधर )
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जब बदले पर्यावरण , मत बैठे कर जोड़।
कर ले शुध्द विचार जो,,कुछ तो होगा तोड़। 21

( पयोधर )
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छिनी शाँति हर जीव की,बड़ा गज़ब का शोर।
प्रति दिन बनता जा रहा ,पर्यावरण कठोर। 22
( बल)
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पर्यावरण नवीन जो , तो काहे घबराय।
हम इसके अनुकूल हो ,ऐसा करो उपाय। 23

( हंस)
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सागर के होते हुये, कहँ पीने का नीर।
अस्त व्यस्त पर्यावरण ,बात बड़ी गम्भीर। 24
(गयंद )
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पेड़ कटे पर्वत छटें, पवन रुके बढ़ पीर ।
सहज बने पर्यावरण ,कर चिन्तन ‘मधु’ वीर। 25

(कच्छप)
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मधुसूदन गौतम कलम घिसाई
कोटा राजस्थान
9414764891

नोट ―प्रत्येक कोष्ठक में दोहे के प्रकार का नाम लिखा है

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 336 Views

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