Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 May 2022 · 1 min read

पुकार सुन लो

कटते हुए दरख्तों की तुम गुहार सुन लो
रुंधे गले से सिसकी भारी पुकार सुन लो

परिंदों के घरोंदों को डाल न मिल पाएगी
मुसाफिर को धूप में छांव न मिल पाएगी

दरख़्त न रहेंगे तो धरती प्यासी रह जायेगी
कंक्रीट के शहर में एक बूंद भी न मिल पाएगी

पानी के बिना ये धरती बंजर बन जाएगी
आसमां को निहारते दुनिया उजड़ जाएगी

इन बेजुबानों की आवाज़ चीख पुकार कर रही
बिना हवा पानी के पशु पक्षी और जनता मर रही

Loading...