Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
19 May 2022 · 1 min read

प्यासी धरती

व्यंग्य
प्यासी धरती
***********
मजाक अच्छा है
कि धरती भी प्यासी है,
शायद यही सही भी है
क्योंकि धरती रुंआसी सी है।
छोड़ो इन बातों में रखा क्या है
धरती प्यासी रहे या मर जाय
हमें मतलब क्या है?
हम तो अपनी मनमानियां करते रहेंगे
हरियाली का नाश करते रहेंगे
जल स्रोतों को दफन करते रहेंगे
धरती को खोखला करते रहेंगे।
फिर चाहे हम ही इसके शिकार न हो जायें
प्रदूषण,बाढ़, सूखा, अनियंत्रित तापमान से
परेशान क्यों न हो जायें?
बीमारियों की चपेट में आ भी जायें
तो भी कोई बात नहीं,
प्रदूषित हवा सांस के साथ
निगलते रहे कोई बात नहीं,
आक्सीजन की मार से
मर भी जाएं तो भी चलेगा,
हमारी अगली पीढ़ियां भी
हमारी कारगुज़ारियों का शिकार हो जाएं
हमें फर्क नहीं पड़ता,
धरती आग का गोला बन जाए
मुझे इससे क्या?
हम तो अपने आप में शहंशाह है
अपनी मर्ज़ी के मालिक
किसी खुदा से कम कहां हैं?
धरती हमें भी तो बहुत रुलाती है,
माना कि हमें जीने के साधन मुहैया कराती है,
पर बाढ़, सूखा, भूस्खलन, भूकंप ही नहीं
तूफान भी तो लाती ही है,
यही नहीं ज्वालामुखी की आग में झुलसाती भी है
फिर आज प्यासी है तो रोती क्यों है?
वो अपना काम करती है हम अपना करते हैं
तब आज हमें अपनी बेबसी बताती क्यों है?
प्यासी है तो रहे मेरी बला से
इतनी उम्मीद भला हमसे लगाती क्यों है?
टकटकी लगाए हमें देखती क्यों है?
प्यासी है मगर मरती क्यों नहीं है?

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© स्वरचित, मौलिक

Loading...