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24 Feb 2022 · 1 min read

गज़ल

वक्ती तौर पर आज गुनहगार हो गए,
निर्दोष होते हुए भी तलबगार हो गए!

पेश आए बड़ी बेरहमियों से हमसे,
सच सामने आया तो शर्मसार हो गए!

न था ज्ञान गीत गज़ल नज़्म का,
दिल की कही पर अश’हार हो गए!

रहे शान ओ शौक़त के नशे में चूर,
बेदखल हुए तो बेरोजगार हो गए!

ताउम्र बीता दी माँ बाप नें जिसके लिए,
चार पल संग बिताए अच्छे यार हो गए!

-अर्चना शुक्ला”अभिधा”

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