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24 Feb 2022 · 2 min read

सवालों के घेरे में देश का भविष्य

खेलने की उम्र में कूड़े के ढेर से कूड़ा बीनते बच्चे, ट्रैफिक सिगनल पर कला बाज़ियां खाते, तमाशा दिखाते, भीख मांगते, खिलौने, पेन्सिल, अखबार, गुब्बारे, फूल आदि बेचते बच्चे, देखने को मिल ही जाते हैं। इन अभागे बच्चों की संख्या हमारे देश में हजारों लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है जो कि हमारे लिए शर्म की बात है। केवल पेट भरने के अतिरिक्त इन बच्चों को जन्म देने वाले माता-पिता भी अपने पापी पेट का वास्ता देकर पल्ला झाड़ लेते हैं। वहीं सरकार अच्छे दिन आयेंगे का कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। अब दोष दिया भी दिया जाये तो किसको? यही कारण है कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता आ रहा है और यह सिलसिला अनवरत गति से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरित होता आ रहा है जो कि बहुत चिंता का विषय है।
इस समस्या के लिए हमारी सरकार पूरी तरह से दोषी है। बच्चे जिन्हें राष्ट्र का भविष्य कहा जाता है वह बच्चा चाहे गरीब का हो या अमीर का, वह राष्ट्र की अनमोल धरोहर कहलाता है, लेकिन अफसोस इन बड़ी-बड़ी बातों की वास्तविक धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है, प्रश्न उठता है कि देश में राइट टू एजूकेशन एक्ट लागू करने से क्या हासिल, जब सभी को ज्ञात है कि भूखे पेट भजन न होये कहावत यूं ही तो नहीं बनी।
गली-गली शिक्षा पहुंचाने से पहले यदि सरकार गली-गली रोजगार पहुंचाने और उनकी शिक्षा, आवास की व्यवस्था उपलब्ध करा दे तो मुझे नहीं लगता कि इस समस्या का समाधान न निकल पाये। आवश्यकता तो बस सार्थक कदम उठाने की है वही हम लोगों को भी गंभीरता से इस विषय में सोचना चाहिए कि क्या इन मासूमों को दान देकर या उनमें सामान खरीदकर आप हम क्या अपना कर्तव्य निभाते हैं ? ऐसा करना क्या उचित है ? यह अभागे बच्चे भी हमारे समाज का ही हिस्सा है और इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आपकी थोड़ी सी सहानुभूति, थोड़े से प्रयास की आवश्यकता है। यह प्रयास आप उनका मार्गदर्शन करके उन्हें रोजगार के अवसर देना उन्हें शिक्षित करने का भी हो सकता है आप प्रेरणा भी प्रदान कर सकते हैं आदि प्रयास इस समस्या के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे इसमें कोई दो राय नही ।

डॉ. फौजिया नसीम शाद’

Language: Hindi
Tag: लेख
12 Likes · 411 Views
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