"बदलते भारत की तस्वीर"
“बदलते भारत की तस्वीर”
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निज भारत की , सुनो दास्तान;
ये छुए, नित्य ही नई आसमान।
सर उठा , हम ही आगे चल रहे;
देख , सारे दुश्मन हाथ मल रहे।
चाहे कोई , कितना विकल रहे;
स्वदेशी जन,खुशी से मचल रहे।
पुरानी भूल सुधर रही ,अब कई;
फिर से,सच्ची इतिहास बन रही।
सबको, सच्ची ज्ञान मिलेगी अब;
देश को नईपहचान मिलेगी अब।
विश्व, हिंदुस्तान के आगे झुकेगा;
आत्मनिर्भर, ‘भारत’ अब बनेगा।
गद्दारों को अब पहचाना जा रहा;
भारत,विश्वपटल पे अब आ रहा।
मानवता बनेगी, निज देशी पूंजी;
समरसता दिखेगी , यहीं सतरंगी।
हर घर,भाईचारे से आबाद होगा;
जाति धर्म पर नहीं, विवाद होगा।
उच्चशिक्षा लेंगी,हर बच्ची देश में;
विवाहित होंगी , अब इक्कीस में।
सीमारेखा पर, डटे हैं वीर-जवान;
पूरा देश करे अब,उनका सम्मान।
हर क्षेत्र में देश खींचे, नई लकीर;
यही है, बदलते भारत की तस्वीर।
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स्वरचित सह मौलिक;
……✍️पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।