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12 Dec 2021 · 1 min read

कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते...

कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते…

कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते,
मिलते हैं दुश्मनों से गले,
छिप-छिप के जो ,
कहते हैं वफादारी,
सरेआम नहीं होते ।
अरमानों के तराजू पर,
सियासत और हुकुमत है,
मौत पे भी सियासत,
कभी खुलेआम नहीं होते।
नफ़रत की चिंगारियों संग,
ख़ौफ़ का कोहरा है,
पर कहतें है कि,
हम कभी बदनाम नहीं होते।
देखा नहीं कभी उनकी,
आंखों का समुंदर होना,
वीरों की वीरगति पे,
कभी वे रुख़सत नहीं होते।
दधीचि के पुत्र हम भी,
अस्थियों से वज्र बनाते,
शराफत किए फिरते,
पर तलबगार नहीं होते ।
जग गए हैं अब,
बस्ती के सोये हुए मुलाजिम,
भरमाना उन्हें तो छोड़ो,
बदनाम सियासतदारों,
दौलत पे नाज करनेवाले,
कभी मददगार नहीं होते।

कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते…

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १२ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष , नवमी , रविवार ,
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201

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