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11 Dec 2021 · 1 min read

खत बनाम मोहब्ब्त

डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

ये खत मेरी मोहब्बत का
बिना पढ़ कर जलाना है
कसम से तुम तो रहने दो
मुझे तो बस आजमाना है
दुआ देता है ये परवाना
शम्मा तू रहे रौशन इसी तरह
मुझे तो यूं ही उल्फ़त में
आज नही तो कल जल ही जाना है
मिरी दीवानगी को अब
न रास आएगी तेरी चाहत
मुझे लगता है दुनिया से
पड़ेगा बेसबब हाँथ अब खाली
ये खत मेरी मोहब्बत का
बिना पढ़ कर जलाना है
कसम से तुम तो रहने दो
मुझे तो बस आजमाना है
गिले शिकवे मोहब्ब्त के
इलाही तुम तो रहने दो
न बोसा है न आलिंगन
तराना इश्क का तुमको गाना है
अजब से चीज होती है
मोहब्बत भी , निभानी है
मिरे हिस्से में एय जालिम
ये तडपती हुइ जवानी है
ये खत मेरी मोहब्बत का
बिना पढ़ कर जलाना है
कसम से तुम तो रहने दो
मुझे तो बस आजमाना है

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