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17 Sep 2016 · 1 min read

दो मत्तगयंद (मालती) सवैया छंद

दो मत्तगयंद (मालती) सवैया छंद

देश हुआ बदहाल यहाँ अब चैन कहीँ मिलता किसको है,
चैन भरा दिन काट रहे सब लूट लिए दिखता किसको है,
भारत की परवाह नहीँ यह सत्य यहाँ जचता किसको है,
ऐश करे अगुवा पर शुल्क यहाँ भरना पड़ता किसको है।।1।।

पाप यहाँ पर रोज बढ़े पर धीर धरे छुप के रहती है,
जुल्म हुआ इतना फिर भी चुप है कि नहीं कुछ भी कहती है,
झूठ कहे अगुवा जिस पे सब काज गवाँ कर के ढहती है,
सोच रहा यह भारत की जनता कितना कितना सहती है।।2।।

– आकाश महेशपुरी

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