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10 Dec 2021 · 1 min read

जिंदगी

जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती ,

ये महबूबा किसे भली नहीं लगती ,

सताती -रुलाती है बेशक हँसाती भी ,

मगर फिर भी इसकी हर अदा भाती ।

कभी तो सब अरमान पूरे हो जाते हैं ,

और कभी नाचीज़ चाहों को तरसाती ।

चाहे इसे मौकापरास्त कह लो या बेवफा ,

हालात बदलते ही यह पेंतरा बदलती ।.

गम -खुशी है सिंगार जिसके हरदम ,

आह और वाह में सदा यह झुलाती ।

कोई इसे समझ ले तो कामयाब इंसा ,

वरना ये पहेली सभी से नहीं सुलझती ।

कोई तक़दीर का मारा हो जाता है हताश ,

जिंदगी की डोर इसके हाथों से छूट जाती ।

किसने कहा इसे दौलत खरीद सकती है,

दौलत मिलने पर भी रूह प्यासी रह जाती ।

न हो जिसके साथ कोई हमसफर /हमराज़ ,

यह जिंदगी भी उसकी दोस्त नहीं बन पाती ।

मजबूरीयां ही थमाती जहर का प्याला हाथों में,

वरना तन से जां निकलनी क्या आसां है होती ?

बहुत आसान है कायर औ डरपोक का नाम देना ,

कोई सहके दिखाये फिर कहे मजबूरी क्या होती ।

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