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5 Dec 2021 · 1 min read

भावना की पीड़ा

ह्रदय में रहती थी वोह ,

कभी प्रेम व् त्याग बनकर ।

ईश्वर द्वारा इंसान को ,

दी गयी जो अमूल्य धरोहर बनकर ।

परन्तु आधुनिकता में हुआ ,

बुद्धि का ऐसा योग ।

बुद्धि का ही करने लोग ,

जग में सब उपयोग ।

भावनायों की भाषा और ,

भावनायों के सभी रूप

पूंजीवादीता ने कर दिया इसे कुरूप ।

अब पूछो इन मशीनों ( इंसानों ) से ,

तुम्हारी पहचान क्या है ?

प्रेम, करुणा ,दया के प्रति ,

जिनके ह्रदय में नहीं स्थान है ।

वोह मानव मानव नहीं ,

वो एक मरघट के सामान है ।

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