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13 Nov 2021 · 1 min read

डूबकर हम तो बस डूब जाते रहे।

जान अपनी जो तुमको बनाते रहे।
तेरे राहों में दिल को बिछाते रहे।

रात है चांदनी की मुकम्मल मुझे
आंख में चांद फिर तो बसाते रहे।

एक तू है हमारी हसीं दास्तां
हम गज़ल की तरह गुनगुगाते रहे।

आप बाहों में भर लो यही सोचकर
बाहें ये सोचकर हम फैलाते रहे।

रातभर मुझको करवट बदलनी पड़ी
आप मेरे ख्यालों में आते रहे।

तेरे आंखों के सागर का सीमा नहीं।
डूबकर हम तो बस डूब जाते रहे।

तेरे दिल में है बहती नदी देखकर
प्रेम की कश्तियां हम चलाते रहे।

थाम लो मेरे उल्फत की ये कश्तियां
जिसको पाने को लोहे चबाते रहे।

है वहम इश्क़ कहने का वो सिलसिला
उनके महफ़िल में जो हम सुनाते रहे।

वक्त के साथ दीपक न बदला कभी।
लोग आते रहे लोग जाते रहे।

©®दीपक झा रुद्रा

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