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9 Nov 2021 · 1 min read

'ग़ज़ल'

‘ग़ज़ल’

बेईमानी की दौलत रखने, जो तहख़ाने जाते हैं,
फिर रातों को वो उसे लुटाने, छुपकर मयखाने जाते हैं।

चकाचौंध की चाहत में पतंगे जब, लौ से लिपटना चाहते हैं,
घूम-घूमकर डूब-डूबकर, तब जां से परवाने जाते हैं।

चलते-चलते कड़ी धूप में,जब पाँव बहुत थक जाते हैं,
जहाँ दिखी कोई छाँव घनी सी,वहीं सुस्ताने जाते हैं।

सुख में तेरा-तेरा मैं, कहता तो सारा ही जग है ,
आए जाए मुसीबत जब जीवन में, असली तब पहचाने जाते हैं।

जख़्मों की खेती करनेवाले,जब जख्मों से घिर जाते हैं,
तोबा-तोबा करके तब वो हीे,जख़्म सिलवाने जाते हैं।
©®
लेखिका-गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड

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